भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)

दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी

प्रेस विज्ञप्ति

5 अप्रैल 2013

झारखण्ड के छतरा जिले में टीपीसी-पुलिस-सीआरपीएफ द्वारा

की गई 10 कामरेडों की नृशंस हत्या के विरोध में...

महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में सी-60 कमाण्डो द्वारा की गई

अंधाधुंध गोलीबारी 5 कामरेडों की की हत्या के विरोध में...

8 अप्रैल 2013 कोदण्डकारण्य बंदसफल बनाओ!

प्रति-क्रांतिकारी हत्यारे गिरोहों को पाल-पोसकर प्रायोजित कर

जनता और क्रांतिकारियों पर हमले करवा रही शोषक सरकारों की

फासीवादी नीतियों को हरा दो!

27-28 मार्च की दरमियानी रात झारखण्ड के छतरा जिला, कुण्डा पुलिस थाना अंतर्गत लकरबंधा के जंगलों में सरकार-प्रायोजित तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी) तथा पुलिस सीआरपीएफ-कोबरा बलों ने एक भारी हत्याकाण्ड को अंजाम दिया। खून के प्यासे के. विजयकुमार ने, जोकि सीआरपीएफ के मुखिया पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अब झारखण्ड में राज्यपाल के सलाहकार की भूमिका में हैं, सोनिया-मनमोहन-शिंदे- चिदम्बरम-जयराम रमेश फासीवादी शासक गिरोह के इशारे पर इस जघन्य नरसंहार की साजिश रची। भाकपा (माओवादी) और उसके नेतृत्व में जारी क्रांतिकारी आंदोलन का खात्मा करने के व्यापक षड़यंत्र का हिस्सा था यह नरसंहार। एक कोवर्ट आपरेशन के तहत हमारी पीएलजीए के सैनिकों को टीपीसी, पुलिस और कोबरा के सैकड़ों बलों द्वारा घेर लिया गया और उसके बाद उन पर बर्बरतापूर्वक हमला किया गया। रात के अंधेरे में हुए इस हमले में तीन साथी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए और बाकी साथियों को जिंदा पकड़ लिया गया। उनके हथियार छीन लिए गए। सुबह सात अन्य साथियों को टीपीसी, पुलिस और सीआरपीएफ के हत्यारों ने चुन-चुनकर ठण्डे दिमाग से गोली मार दी। मारने से पहले उन्हें क्रूरतम यातनाएं दी गईं। इसके अलावा कम से कम 25 अन्य साथियों को अगवा कर लिया गया।

मृत साथियों में कामरेड ललेश यादव उर्फ प्रशांत (बिहार-झारखण्ड-उत्तर छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमेटी सदस्य मध्य जोन प्रभारी - बिहार रीजियन), कामरेड धर्मेंद्र यादव (सब-जोनल कमेटी सदस्य), कामरेड प्रफुल्ल (सब-जोनल कमेटी सदस्य), कामरेड जयकुमार यादव (प्लाटून कमाण्डर), कामरेड भोला उर्फ अजय यादव, कामरेड अल्बर्ट उर्फ बिजय और कामरेड प्रमोद शामिल हैं। इन वीर योद्धाओं और शोषित जनता के उत्तम सपूतों को दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी विनम्र श्रद्धांजलि पेश करती है और उनके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाने हेतु जनयुद्ध को तेज करने का संकल्प दोहराती है। शहीद साथियों के शोकसंतप्त परिजनों, दोस्तों, साथियों और बिहार-झारखण्ड उत्तर छत्तीसगढ़ की तमाम शोषित जनता के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करती है।

लुटेरे शासक वर्गों और उनके सेवक पुलिस अधिकारियों ने इस हत्याकाण्ड को टीपीसी और भाकपा (माओवादी) के आपसी संघर्ष का नतीजा बताकर अपने हाथों पर लगे खून के छींटों को छुपाने की कोशिश की है। कार्पोरेट वर्गों द्वारा संचालित सहयोजित मीडिया ने इस हत्याकाण्ड की आड़ में तरह-तरह के मनगढ़ंत झूठों के सहारे क्रांतिकारी आंदोलन के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान छेड़ रखा है। मीडिया की एक संस्था ने यह रिपोर्ट गढ़ी कि टीपीसी वह संगठन है जो लेव्ही के पैसों के बंटवारे को लेकर उत्पन्न विवादों के चलते भाकपा (माओवादी) से अलग हुआ था, तो एक और ने लिखा है कि टीपीसी विचारधारात्मक स्तर पर टूटकर अलग हुआ था। कुछ अखबारों ने लिखा है कि इसकी जड़ में जातिगत, यानी आदिवासियों और दूसरी जातियों के बीच का झगड़ा है। जनवादी संगठनों द्वारा इस हत्याकाण्ड पर निष्पक्ष जांच की मांग उठाए जाने पर एक औरप्रतिष्ठितपत्रिका ने यह कहकर खिल्ली उड़ाई किगैर-कानूनीसंगठन कानून की बात कर रहा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि खुद को जनतंत्र का चौथा स्तम्भ बताने वाला मीडिया जनतंत्र के बुनियादी मूल्यों के प्रति भी कितना असहिष्णु बना हुआ है। दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी देश की तमाम जनता का आह्वान करती है कि इस तमाम झूठे प्रचार को सिरे से खारिज कर दे जोकि शोषक शासक वर्गों के मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा है।

बिहार-झारखण्ड में दशकों से जारी क्रांतिकारी आंदोलन के धधकते शोलों को बुझाने के लिए शोषक सरकारों ने तरह-तरह के कई हथियारबंद गिरोहों का गठन किया है और पालन-पोषण किया है जिनमें गुण्डों, लम्पट तत्वों और अलग-अलग कारणोें से हमारे आंदोलन से अलग हुए पतित तत्वों को इकट्ठा किया गया। टीपीसी, पीएलएफआई, नागरिक सुरक्षा समिति आदि हथियारबंद गिरोह पुलिस अर्द्धसैनिक बलों द्वारा सृजित संचालित हैं। ये फासीवादी गिरोह आए दिन लूटपाट, डकैती, वसूली, बलात्कार और हत्या की घटनाओं को अंजाम देते हैं। आंध्रप्रदेश में विभिन्न नाम के काले गिरोह, दण्डकारण्य में सलवा जुडूम, बंगाल में हर्मद बाहिनी भैरव बाहिनी, ओड़िशा में शांति संघो आदि का गठन भी सरकारों की इसी फासीवादी नीति का हिस्सा था।

दूसरी ओर, मीडिया में आई खबरों के मुताबिक 4 अप्रैल को छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र की सीमा पर, महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले के भामरागढ़ क्षेत्र में सी-60 कमाण्डों के साथ हुई कथित मुठभेड़ में दो महिलाओं समेत पांच माओवादी मारे गए। पुलिस का दावा है कि मृतकों की संख्या बढ़ सकती है। उसका यह भी कहना है कि 100 से ज्यादा माओवादी गुप्त बैठक कर रहे थे जिनके साथ दो घण्टे तक चली मुठभेड़ में ये मौतें हुई थीं जबकि उनके किसी कमाण्डो को खरोंच तक नहीं आया! सौ से ज्यादा माओवादियों की बैठक का पुलिसिया दावा सरासर झूठ है। दरअसल हमारे स्थानीय कामरेडों का एक दस्ता अपने रोजमर्रा के कामकाज के मुताबिक ग्रामीण जनता के साथ बैठक कर रहा था ताकि उसकी समस्याओं का हल किया जा सके। मुखबिरों के जरिए इसकी खबर पाकर सैकड़ों कमाण्डो बलों ने बैठक-स्थल को तीन दिशाओं से घेर लिया और अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इस अचानक हमले से भगदड़ सी मच गई और जनता भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगी। भागने वाले निहत्थे लोगों पर भी कमाण्डो रूपी लाइसेंसी हत्यारों ने गोलियां बरसाईं। इस एकतरफा हमले में हमारे पीएलजीए साथियों के अलावा कुछ ग्रामीण भी मारे गए और कई अन्य घायल हुए। गौरतलब है किआपरेशन नवजीवनके नाम से गढ़चिरोली पुलिस ने कुछ दिन पहले एक दिवालिया अभियान छेड़ रखा है। इसके तहत हमारी पार्टी में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को आत्मसमर्पण कराने के लिए उनके परिवारों पर कई प्रकार का दबाव डाला जा रहा है। यह हत्याकाण्ड भी इसी आपरेशन की कड़ी था। पुलिस इसे इस साल की लगातार दूसरी बड़ी सफलता बताते हुए जश्न मना रही है। डीआईजी रवींद्र कदम, एसपी सुएज़ हक, अहेरी एसडीपीओ भरत ठाकुर इस हत्याकाण्ड के लिए जिम्मेदार हैं। हत्या और आतंक के बल पर क्रांतिकारी आंदोलन का सफाया करने का जो सपना वो देख रहे हैं अंततः वह दिवास्वप्न ही साबित होगा।

सर्वविदित है कि 2009 के मध्य से भारत के शासक वर्गों ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों की शह पर आपरेशन ग्रीन हंट के नाम से एक भारी चौतरफा हमला छेड़ रखा है। इसके तहत दसियों हजार पुलिस बलों के अलावा करीब एक लाख अर्द्धसैनिक बलों को देश के उन तमाम हिस्सों में तैनात किया गया है जहां क्रांतिकारी संघर्ष मजबूती से आगे बढ़ रहा है। यह हमला दरअसलजनता पर युद्धहै जिसका मकसद है तमाम जनवादी क्रांतिकारी आंदोलनों को सफाया करना और देश-विदेश की कार्पोरेट कम्पनियों को इन इलाकों में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों की लूटखसोट की खुल्लमखुल्ला छूट दे देना। अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए वो साम्राज्यवादियों की एलआइसी (कम तीव्रता वाला संघर्ष) की रणनीति का सहारा ले रहे हैं। इस घृणित नीति के अंतर्गत ही टीपीसी जैसे प्रति-क्रांतिकारी हथियारबंद गिरोहों को पाला-पोसा जा रहा है और उन्हें हम परउकसाया जा रहा है। पुलिस, अर्द्धसैनिक सशस्त्र कमाण्डो बलों के जरिए कत्लेआम मचाया जा रहा है। हम यह चेतावनी देते हैं कि जनता इन तमाम साजिशों को जरूर हरा देगी और इन गिरोहों उनके आकाओं को अपनी करतूतों की कीमत चुकानी ही पड़ेगी।

भाकपा (माओवादी) की दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी देश के मजदूर-किसानों, छात्र-बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों, सम्पादकों, अध्यापकों, वकीलों - तमाम जनपक्षधरों और देशभक्तों से अपील करती है कि वे झारखण्ड में टीपीसी-पुलिस-कोबरा द्वारा किए गए फासीवादी हत्यकाण्ड की घोर निंदा करें; इस आड़ में जारी कार्पोरेट मीडिया के दुष्प्रचार का खण्डन करें; और टीपीसी-सीआरपीएफ द्वारा अगवा किए गए हमारे अन्य साथियों की सुरक्षित रिहाई की मांग करें। गढ़चिरोली के भामरागढ़ इलाके में किए गए बर्बर हत्याकाण्ड का खण्डन करें। साथ ही, सभी जनता से हमारा विनम्र निवेदन है कि जल-जंगल-जमीन पर जनता के अधिकार के लिए, देश की अनमोल प्राकृतिक सम्पदा की लूटखसोट को रोकने के लिए तथा नई जनवादी व्यवस्था की स्थापना के लिए बिहार-झारखण्ड, दण्डकारण्य समेत देश के विभिन्न हिस्सों में जारी क्रांतिकारी आंदोलन के पक्ष में मजबूती से खड़े रहें।

इन फासीवादी हत्याकाण्डों के खिलाफ 8 अप्रैल 2013 को चौबीस घण्टे कादण्डकारण्य बंदरखा जाएगा। इस मौके पर विभिन्न रूपों में विरोध प्रतिरोध की कार्रवाइयां और जन गोलबंदी होंगी। (हालांकि छात्रों की परीक्षाओं और स्वास्थ्य आदि आवश्यक सेवाओं को इस बंद से मुक्त रखा जाएगा।) तमाम दण्डकारण्य जनता से हम अपील करते हैं कि इसे सफल बनाया जाए।

 (गुड्सा उसेण्डी)

प्रवक्ता,

दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)